श्रावण मास में शिव पूजा का महत्व और शनि, राहु, केतु की कुदृष्टि से मुक्ति – शिव पुराण की एक प्रेरणादायक कथा सहित
( Writer : Apurba Das )
श्रावण मास हिंदू धर्म में अत्यंत पवित्र और पुण्यदायक माना जाता है। यह महीना पूर्ण रूप से भगवान शिव को समर्पित होता है। इस माह में भक्तजन उपवास, अभिषेक, रुद्राभिषेक, जल चढ़ाना और महामृत्युंजय मंत्र का जाप करते हैं। विशेषकर सोमवार का व्रत शिव जी को अत्यंत प्रिय है। मान्यता है कि श्रावण मास में शिव पूजा करने से जीवन में आने वाली बाधाएं दूर होती हैं और विशेष रूप से शनि, राहु और केतु की कुदृष्टि से राहत मिलती है।
श्रावण मास में शिव पूजा का महत्व :
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार शनि, राहु और केतु की दशा या महादशा जब कुंडली में कष्टकारी होती है, तो व्यक्ति के जीवन में मानसिक, शारीरिक और आर्थिक समस्याएं उत्पन्न होती हैं। ऐसे में भगवान शिव की पूजा विशेष रूप से कारगर मानी जाती है। शिव को “भूतनाथ” कहा गया है, यानी वे सभी ग्रहों के स्वामी हैं।
शनि देव स्वयं शिव भक्त हैं। जब कोई भक्त सच्चे मन से शिव का पूजन करता है तो शनि देव उसकी पीड़ा को कम कर देते हैं।
राहु और केतु, जो छाया ग्रह कहलाते हैं, भ्रम और मानसिक तनाव उत्पन्न करते हैं। श्रावण में शिव पूजा, रुद्राभिषेक और महामृत्युंजय मंत्र का जाप करने से इन ग्रहों का दुष्प्रभाव कम हो जाता है।
श्रावण मास की शिव पुराण की एक प्रेरणादायक कथा
"राजा चंद्रसेन और शिवलिंग की महिमा"
प्राचीन काल की बात है। उज्जयिनी नगरी में चंद्रसेन नामक एक धर्मात्मा और शिवभक्त राजा राज्य करता था। वह हर दिन शिवलिंग की पूजा करता और महामृत्युंजय मंत्र का जाप करता था। उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उसे चमत्कारी शिवलिंग प्रदान किया था। वह शिवलिंग राजा के महल में सुरक्षित रखा गया था।
एक दिन एक गरीब बालक श्रवण, जो शिवभक्त था, राजमहल के बाहर खड़ा होकर शिवलिंग के दर्शन करने लगा। उसकी आंखों में भक्ति और समर्पण की भावना देखकर शिवलिंग स्वयं प्रकट हो गया और बालक को आशीर्वाद दिया। बालक वहीँ बैठकर “ॐ नमः शिवाय” का जाप करने लगा।
उसी समय कुछ असुर राजा चंद्रसेन के राज्य पर आक्रमण करने की योजना बना रहे थे। उन्होंने सोचा कि यदि वे चंद्रसेन को हरा देंगे तो उनका शिवलिंग भी हाथ लग जाएगा और वे अमरत्व प्राप्त कर लेंगे।
रात को जब चंद्रसेन ध्यान में मग्न थे और बालक श्रवण भी शिव जाप कर रहा था, तभी असुरों ने हमला कर दिया। पूरा नगर भयभीत हो गया। परंतु जैसे ही असुर महल के पास पहुंचे, शिवलिंग से तेज ज्योति प्रकट हुई और एक विशाल रूप में भगवान शिव प्रकट हो गए। उन्होंने अपने त्रिशूल से असुरों का वध कर दिया और नगर की रक्षा की।
बालक श्रवण को भगवान शिव ने आशीर्वाद दिया और कहा:
"हे वत्स! तूने जो सच्ची भक्ति दिखाई है, उससे मैं प्रसन्न हूं। जो भी श्रावण मास में मेरी पूजा करेगा, उसे मैं शनि, राहु, केतु और अन्य सभी बाधाओं से मुक्त कर दूंगा।"
राजा चंद्रसेन ने इस घटना को सभी प्रजा को बताया और श्रावण मास के सोमवार को सामूहिक रूप से रुद्राभिषेक और शिवलिंग की स्थापना की जाने लगी।
शनि, राहु, केतु की शांति के लिए शिव पूजा विधि :
1. शिवलिंग का जलाभिषेक करें:
ताम्र या पीतल के लोटे से जल चढ़ाएं।
“ॐ नमः शिवाय” मंत्र का जाप करते रहें।
काले तिल और दूध से अभिषेक करें।
2. महामृत्युंजय मंत्र का जाप करें:
महामृत्युंजय मंत्र:
“ॐ त्र्यंबकं यजामहे सुगंधिं पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारुकमिव बंधनान् मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्॥”
प्रतिदिन कम से कम 108 बार इस मंत्र का जाप करें।
इससे राहु-केतु की पीड़ा शांत होती है और मानसिक शांति मिलती है।
3. बेलपत्र और धतूरा अर्पण करें:
भगवान शिव को बेलपत्र, धतूरा, आक, शमी के पत्ते अर्पण करें।
विशेषकर शनिवार और सोमवार को यह करना अत्यंत शुभ होता है।
4. राहु-केतु मंत्रों का जाप करें शिवलिंग के समक्ष:
राहु मंत्र: “ॐ भ्रां भ्रीं भ्रौं सः राहवे नमः॥”
केतु मंत्र: “ॐ स्त्रां स्त्रीं स्त्रौं सः केतवे नमः॥”
शनि मंत्र: “ॐ शं शनैश्चराय नमः॥”
शिव की उपस्थिति में इन मंत्रों के जाप से ग्रहों का संतुलन बनता है।
श्रावण मास के अन्य लाभ :
• मानसिक शांति और अवसाद से मुक्ति
• रोगों से मुक्ति और स्वास्थ्य लाभ
• विवाह में आ रही बाधाएं समाप्त होती हैं
• आर्थिक समस्याओं का समाधान
• परिवार में शांति और सुख-समृद्धि
श्रावण मास केवल एक धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि आत्मा को शुद्ध करने और जीवन को संतुलित करने का अवसर है। भगवान शिव सरल हृदय के देवता हैं, जिन्हें जल, बेलपत्र और सच्ची भक्ति मात्र से प्रसन्न किया जा सकता है। शनि, राहु, और केतु जैसे ग्रहों की कुदृष्टि, जो हमारे जीवन में अंधकार लाती है, वह भी श्रावण मास की शिव पूजा से दूर हो सकती है।
इसलिए आइए, हम भी इस श्रावण मास में सच्चे मन से शिव की आराधना करें और जीवन के अंधकार को प्रकाश में बदलें।