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বিজ্ঞাপন

भगवान ज़्यादा बड़े हैं या माता-पिता? कौन है सच्चे दिलवाले?




भगवान ज़्यादा बड़े हैं या माता-पिता? कौन है सच्चे दिलवाले?

( Apurba Das )

इस संसार में हर व्यक्ति कभी न कभी इस प्रश्न से टकराता है — “भगवान बड़े हैं या माता-पिता?” यह सवाल केवल तर्क का विषय नहीं है, बल्कि यह जीवन की सच्चाई, भावनाओं और अनुभवों से जुड़ा हुआ है। जहां एक ओर भगवान को सर्वशक्तिमान, सर्वज्ञ और सर्वत्र माना जाता है, वहीं दूसरी ओर माता-पिता को धरती पर भगवान का रूप कहा गया है। लेकिन जब हम व्यवहारिक जीवन में उतरते हैं, तो अनेक उदाहरण सामने आते हैं जो इस प्रश्न का उत्तर बदल देते हैं।







🙏 माता-पिता: धरती के सच्चे भगवान

जब एक बच्चा जन्म लेता है, तब वह न भगवान को जानता है, न पूजा-पाठ को। वह केवल माता-पिता की गोद में पलता है, उनके स्पर्श में सुरक्षा महसूस करता है, और उन्हीं की देखभाल में बड़ा होता है। जब बच्चा रोता है, तो मां उसे सीने से लगाकर चुप कराती है, पिता उसके लिए दिन-रात मेहनत करता है। बच्चा जब बीमार होता है, तो माता-पिता रात भर जागते हैं, हर संभव उपाय करते हैं ताकि उनका लाल स्वस्थ हो जाए।
यह सब बिना किसी अपेक्षा के किया जाता है — न कोई बदले में आशीर्वाद मांगते हैं, न पूजा।





◽भगवान: आस्था के प्रतीक

भगवान को हम देखते नहीं, लेकिन विश्वास करते हैं। वे मूर्तियों, तस्वीरों, या किसी अदृश्य शक्ति के रूप में हमारी श्रद्धा का केंद्र होते हैं। हम उनसे प्रार्थना करते हैं, कुछ मांगते हैं, और आशा करते हैं कि वे हमारी मदद करेंगे। लेकिन क्या वे सच में प्रत्यक्ष रूप में हमारी सहायता करते हैं?

जब कोई व्यक्ति संकट में होता है — बीमारी, आर्थिक तंगी या मानसिक परेशानी — तो सबसे पहले उसके माता-पिता, परिवार या मित्र ही आगे आते हैं। भगवान को याद तो किया जाता है, लेकिन क्या कभी भगवान स्वयं आकर आपकी बीमारी ठीक करते हैं? क्या उन्होंने कभी आपकी फीस जमा कराई या भूख में खाना दिया? नहीं। यह काम भी आखिरकार इंसान ही करता है।

◽भगवान देते क्यों नहीं, जबकि उनके पास सब कुछ है?

कई लोग कहते हैं, “भगवान सबके ऊपर दया करते हैं। वो सबकी प्रार्थना सुनते हैं।” लेकिन अगर यह बात पूरी तरह सही होती, तो दुनिया में कोई भूखा नहीं मरता, कोई बच्चा सड़क पर नहीं सोता, और कोई गरीब इलाज के अभाव में दम नहीं तोड़ता।

भगवान को सबकुछ देने वाला माना जाता है, फिर भी जब एक भक्त पूरी श्रद्धा से उनसे कुछ मांगता है, तो वे नहीं देते। जबकि माता-पिता अगर समर्थ हों, तो अपनी सामर्थ्य से अधिक करके भी अपने बच्चों की मांग पूरी करते हैं।
तो क्या भगवान असमर्थ हैं? या फिर वे हमारी परीक्षा लेते हैं? लेकिन सवाल यह है कि एक सच्चा दिलवाला कौन होता है — जो बिना शर्त दे या जो हर बार शर्त रखे?





मूर्ति पूजा और मेहनत का सच

कई बार हम सोचते हैं कि भगवान की पूजा करके, उनकी तस्वीर के सामने अगरबत्ती जलाकर हमें फल मिलेगा। लेकिन असलियत यह है कि बिना मेहनत के कुछ नहीं मिलता। किसान अगर खेत में मेहनत न करे और सिर्फ मंदिर में बैठे, तो क्या उसे अनाज मिलेगा? छात्र अगर पढ़ाई छोड़कर भगवान का जाप करे, तो क्या परीक्षा में पास होगा?

फिर भी जब हम मेहनत के बल पर सफलता पाते हैं, तो इसे भगवान का आशीर्वाद मानते हैं, जबकि सच्चाई यह है कि वह हमारी मेहनत, माता-पिता का त्याग, और अपने प्रयासों का नतीजा होता है।

◽इंसान ही इंसान की सहायता करता है

इस पृथ्वी पर जब कोई संकट आता है — जैसे बाढ़, भूकंप, महामारी — तब भगवान नहीं, बल्कि इंसान ही आगे आते हैं। डॉक्टर, नर्स, पुलिस, स्वयंसेवक, और आम नागरिक ही मदद करते हैं। किसी को भूख लगी हो, तो भोजन देने वाला कोई व्यक्ति होता है, न कि आसमान से टपकती थाली।

यह सिद्ध करता है कि इंसानियत ही सबसे बड़ा धर्म है। यदि हर व्यक्ति एक-दूसरे की सहायता करे, तो दुनिया में न तो गरीबी रहेगी, न दुख।






◽सच्चे दिलवाले: माता-पिता और अच्छे दोस्त

माता-पिता ही ऐसे होते हैं जो बिना बोले आपकी जरूरत समझते हैं, आपके दुख को अपना दुख मानते हैं, और आपकी छोटी-सी खुशी में भी आनंद लेते हैं।
उसी तरह, एक सच्चा मित्र भी कभी स्वार्थ नहीं देखता। वह मदद करता है, साथ देता है, और कभी-कभी वह भी वह कर जाता है जो भगवान नहीं करते।


भगवान की भूमिका हमारे जीवन में एक विश्वास की तरह है। वह आस्था, प्रेरणा और मन की शांति का स्रोत हो सकते हैं। लेकिन जब बात व्यवहारिक सहायता, त्याग, प्रेम और सच्ची दिलदारी की आती है, तो माता-पिता सबसे आगे होते हैं।

इसलिए कहा गया है —
“भगवान ने हम सबको बनाया, पर माता-पिता को भगवान ने अपना रूप देकर धरती पर भेजा।”
और यही कारण है कि माता-पिता सच्चे दिलवाले होते हैं, जिनका स्थान भगवान से भी ऊपर है।


• माता-पिता जन्म से लेकर बड़े होने तक हर पल साथ होते हैं।

• भगवान को कभी प्रत्यक्ष मदद करते नहीं देखा गया।

• मेहनत से ही फल मिलता है, पूजा से नहीं।

• संकट में इंसान ही इंसान की मदद करता है।

• माता-पिता और अच्छे दोस्त सच्चे दिलवाले होते हैं।




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