कौन है श्रेष्ठ, शिव शंकर या भगवान विष्णु? शिव शंकर क्यों भगवान विष्णु को ध्यान करते रहते हैं?
( Writer: Apurba Das )
हिंदू धर्म की परंपरा अत्यंत विशाल और गूढ़ है, जिसमें अनेक देवी-देवताओं की महिमा का वर्णन मिलता है। इनमें प्रमुख त्रिदेव – ब्रह्मा, विष्णु और महेश (शिव) – सृष्टि के तीन मुख्य कार्यों का संचालन करते हैं। ब्रह्मा सृष्टिकर्ता हैं, विष्णु पालनकर्ता और शिव संहारक। इन तीनों की महिमा और कार्य अलग-अलग होते हुए भी एक-दूसरे से पूर्णतः जुड़े हुए हैं। जब प्रश्न उठता है कि कौन श्रेष्ठ है – शिव या विष्णु, तो इसका उत्तर केवल बाह्य दृष्टि से नहीं, अपितु आध्यात्मिक गहराई से समझा जाना चाहिए।
1. शिव और विष्णु: दो रूप, एक ब्रह्म
हिंदू दर्शन में यह माना जाता है कि ब्रह्म (परम सत्य) एक ही है, जिसे विभिन्न रूपों में पूजा जाता है। भगवान शिव और भगवान विष्णु उसी परम ब्रह्म के दो दिव्य स्वरूप हैं। एक बिना दूसरे के अधूरा है। जैसे अग्नि और ताप, जल और शीतलता, वैसे ही शिव और विष्णु भी एक-दूसरे के पूरक हैं।
भगवद्गीता में भगवान श्रीकृष्ण (जो विष्णु के अवतार हैं) कहते हैं:
"यो मां पश्यति सर्वत्रं सर्वं च मयि पश्यति।"
– अर्थात जो मुझे सब में और सब को मुझ में देखता है, वही मुझे वास्तव में जानता है।
शिव पुराण में भी कहा गया है:
"शिवाय विष्णुरूपाय शिवरूपाय विष्णवे।"
– अर्थात भगवान विष्णु शिवस्वरूप हैं और शिव विष्णुस्वरूप।
2. भगवान शिव द्वारा विष्णु का ध्यान: आध्यात्मिक संकेत
भगवान शिव को 'योगेश्वर', 'महायोगी' और 'तपस्वी' कहा गया है। वे ध्यान में लीन रहते हैं और अपने भीतर समस्त ब्रह्मांड का अनुभव करते हैं। उनके ध्यान का अर्थ केवल किसी व्यक्ति या देवता का पूजन नहीं, बल्कि यह अंतर्ज्ञान, समर्पण और आध्यात्मिकता का प्रतीक है।
शिव द्वारा विष्णु का ध्यान करने की घटनाएं कई पुराणों में मिलती हैं, जैसे कि शिव पुराण, पद्म पुराण, और स्कंद पुराण। लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि वे विष्णु के अधीन हैं, बल्कि यह दर्शाता है कि वे एक-दूसरे के गुणों को स्वीकार करते हैं और उनकी महानता का सम्मान करते हैं।
एक कथा के अनुसार, जब भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप में असुरों को मोहित कर अमृत देवताओं को पिलाया, तो भगवान शिव ने उस रूप को देखने की इच्छा की। जब शिव जी ने मोहिनी रूप को देखा, तो वे कुछ क्षणों के लिए मोहित हो गए और भगवान विष्णु से प्रेम करने लगती है। दोनों का मिलन होता है और भगवान अयप्पा का जन्म होता है। भगवान अयप्पा दक्षिण भारत में पूजे जाते हैं।
इस घटना को लेकर यह दर्शाया गया कि शिव भी विष्णु के लीलामय रूप की महिमा को स्वीकार करते हैं।
3. विष्णु का शिव पूजन भी उतना ही महत्वपूर्ण
शिव की तरह भगवान विष्णु भी शिवजी की पूजा करते हैं। उदाहरणस्वरूप, रामायण में वर्णन है कि भगवान श्रीराम ने रावण वध से पहले रमेश्वरम में शिवलिंग की स्थापना की और शिवजी की पूजा की थी। श्रीकृष्ण भी अनेक अवसरों पर भगवान शंकर की स्तुति करते हैं।
इससे स्पष्ट है कि श्रद्धा, भक्ति और समर्पण दोनों के बीच परस्पर है। दोनों एक-दूसरे को पूजते हैं – यह द्वैत नहीं, बल्कि अद्वैत का भाव है।
4. क्या कोई श्रेष्ठ है?
यदि हम "श्रेष्ठता" को केवल शक्तियों, चमत्कारों या पद की दृष्टि से देखें, तो यह तुलना अधूरी और भ्रामक होगी। दोनों ही देवता अनंत, अनादि और अपार शक्तियों से युक्त हैं। दोनों के भक्तों को अपने-अपने आराध्य में परम ब्रह्म का अनुभव होता है।
भगवान विष्णु धर्म की स्थापना, लोक-पालन, और अवतारों के माध्यम से अधर्म के विनाश में सक्रिय रहते हैं।
भगवान शिव योग, वैराग्य, विनाश और पुनर्निर्माण के प्रतीक हैं।
जैसे अगर कोई किसान बीज बोता है (ब्रह्मा), कोई उसकी देखभाल करता है (विष्णु), और कोई फसल काटता है ताकि अगली बार नई फसल बोई जा सके (शिव), तो क्या हम कह सकते हैं कि फसल काटने वाला श्रेष्ठ है या बीज बोने वाला?
हर कार्य की अपनी महत्ता होती है।
5. एकता का संदेश: "हर हर महादेव" और "जय श्री हरि"
भगवान शिव को "हर" कहा जाता है और विष्णु को "हरि"। संत कबीर ने कहा था:
"हरि रूठे गुरु ठौर है, गुरु रूठे नहीं ठौर।"
यहां "हरि" का तात्पर्य विष्णु से है, और गुरु रूप में शिव को भी देखा जा सकता है।
वास्तव में, "हरि और हर" एक ही ब्रह्म के दो प्रतिबिंब हैं, जो भक्तों को उनकी भावना के अनुसार दर्शन देते हैं।
6. आदिशक्ति और तंत्र में दोनों समान
शक्ति तंत्र में शिव और विष्णु दोनों ही आदिशक्ति के अधीन बताए जाते हैं। देवी भागवत पुराण में कहा गया है कि ब्रह्मा, विष्णु और शिव सभी आदिशक्ति की प्रेरणा से कार्य करते हैं।
मूल ऊर्जा शून्य के समान है जो न तो ऋणात्मक है और न ही धनात्मक। मूल ऊर्जा न तो पुरुष है और न ही स्त्री। उससे ही ऋणात्मक और धनात्मक , देवी, देवता, स्त्रियाँ, पुरुष, किन्नर, गंधर्व आदि उत्पन्न होते हैं। उदाहरण के लिए, शून्य दाईं ओर धनात्मक और बाईं ओर ऋणात्मक है। बीच में शून्य।
यह भी उल्लेखनीय है कि शिव को 'भोलानाथ' कहा जाता है – जो अपने भक्त के एक लोटा जल से प्रसन्न हो जाते हैं, वहीं विष्णु को 'लक्ष्मीपति' कहा गया है – जो भव्यता और सौंदर्य के प्रतीक हैं। यह दोनों प्रकृति के दो पहलू हैं – त्याग और सौंदर्य।
श्रेष्ठता की नहीं, एकता की भावना जरूरी है
शिव और विष्णु में श्रेष्ठ कौन है – यह प्रश्न व्यक्ति की भावना पर निर्भर करता है। जो शिवभक्त है, उसके लिए शिव सर्वोच्च हैं, और जो विष्णुभक्त है, उसके लिए विष्णु ही सब कुछ हैं।
लेकिन आध्यात्मिक रूप से देखें तो दोनों एक ही परम तत्व के विभिन्न स्वरूप हैं। एकता, परस्पर प्रेम और सम्मान का यह भाव ही हिंदू धर्म की सबसे बड़ी विशेषता है।
अतः भगवान शिव द्वारा विष्णु का ध्यान करना या भगवान विष्णु द्वारा शिव की पूजा करना – यह श्रेष्ठता का नहीं, समर्पण, भक्ति और एकत्व का प्रतीक है।
"ना कोई बड़ा, ना कोई छोटा
हरि और हर दोनों हैं न्यारा कोटा।
जो भाव करे जैसा दर्शन पाए
परम तत्व वही अंत में समाए।"
हर हर महादेव।
जय श्री हरि।