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বিজ্ঞাপন

नवमी पर माँ सिद्धिदात्री की पूजा करने से यह सभी फल मिलते हैं




नवमी पर माँ सिद्धिदात्री की पूजा करने से यह सभी फल मिलते हैं 

( Apurba Das )

नवरात्रि का नवम दिन माँ सिद्धिदात्री को समर्पित होता है। यह दिन अत्यंत शुभ और फलदायी माना जाता है क्योंकि माँ सिद्धिदात्री सभी प्रकार की सिद्धियाँ और वरदान देने वाली देवी हैं। भक्त अगर पूरे श्रद्धा भाव से उनकी आराधना करते हैं तो जीवन में सुख, समृद्धि, ज्ञान और मोक्ष की प्राप्ति होती है। आइए विस्तार से जानते हैं कि माँ सिद्धिदात्री कौन हैं, उनकी पूजा क्यों करनी चाहिए, उन्हें कौन-सा प्रसाद अर्पित करना चाहिए और उनका विशेष मंत्र क्या है।


● माँ सिद्धिदात्री कौन हैं?

माँ सिद्धिदात्री, माँ दुर्गा का नौवां रूप हैं। "सिद्धि" का अर्थ है – अलौकिक शक्ति और "दात्री" का अर्थ है – देने वाली। अर्थात् माँ सिद्धिदात्री वे देवी हैं जो अपने भक्तों को सिद्धियाँ और दिव्य शक्तियाँ प्रदान करती हैं।
पुराणों के अनुसार, भगवान शिव ने जब आधा पुरुष और आधा नारी स्वरूप धारण किया था, जिसे "अर्धनारीश्वर" कहा जाता है, तो वह शक्ति माँ सिद्धिदात्री ही थीं। यह देवी 8 प्रमुख सिद्धियाँ देती हैं –

• अणिमा – शरीर को सूक्ष्म बनाने की सिद्धि

• महिमा – अनंत रूप धारण करने की शक्ति

• गरिमा – अत्यधिक भारी बनने की शक्ति

• लघिमा – बहुत हल्का हो जाने की सिद्धि

• प्राप्ति – इच्छानुसार कुछ भी प्राप्त करने की शक्ति

• प्राकाम्य – मनोवांछित इच्छा पूरी करने की सिद्धि

• ईशित्व – दूसरों पर अधिकार प्राप्त करने की शक्ति

• वशित्व – सबको अपने वश में करने की सिद्धि

इनके अतिरिक्त माँ सिद्धिदात्री भक्तों को मानसिक शांति, अध्यात्मिक उन्नति और भौतिक सुख भी प्रदान करती हैं।

● क्यों करना चाहिए माँ सिद्धिदात्री की पूजा?

(1) सभी प्रकार की सिद्धियों की प्राप्ति
जो साधक और भक्त माँ सिद्धिदात्री की उपासना करते हैं, उन्हें सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं। यह सिद्धियाँ केवल योगियों को ही नहीं, सामान्य मनुष्यों को भी उनके जीवन में सफलता दिलाती हैं।

(2) ज्ञान और मोक्ष की प्राप्ति
माँ की आराधना करने से भक्त को परम ज्ञान प्राप्त होता है और वह जन्म-मरण के बंधन से मुक्त होकर मोक्ष की ओर अग्रसर होता है।

(3) भय और रोगों का नाश
माँ सिद्धिदात्री की कृपा से जीवन के सभी भय, मानसिक तनाव, रोग और दुख समाप्त हो जाते हैं।

(4) समृद्धि और सौभाग्य
माँ की कृपा से घर में धन, वैभव और ऐश्वर्य की वृद्धि होती है। सौभाग्य, सम्मान और परिवार में सुख-शांति आती है।

(5) सकारात्मक ऊर्जा की प्राप्ति
नवमी के दिन माँ सिद्धिदात्री की पूजा करने से मन, बुद्धि और आत्मा शुद्ध होती है। नकारात्मकता दूर होकर सकारात्मक ऊर्जा का वास होता है।

● माँ सिद्धिदात्री को क्या प्रसाद अर्पित करें?

• माँ सिद्धिदात्री के पूजन में विशेष प्रकार का प्रसाद अर्पित करने का विधान है।

• तिल और नारियल – इनका भोग लगाने से रोग-शोक दूर होते हैं।

• फल और फूल – मौसमी फल, लाल या गुलाबी फूल अर्पित करना शुभ माना जाता है।

• खीर और हलवा – दूध से बने पकवान विशेष रूप से प्रिय हैं।

• नवेद्य – गेहूं या चावल से बने शुद्ध पकवान अर्पित करें।

• पान-सुपारी – पारंपरिक रूप से माता को पान-सुपारी चढ़ाने का महत्व है।

भक्त अपनी श्रद्धा और सामर्थ्य के अनुसार कोई भी सात्त्विक प्रसाद चढ़ा सकते हैं। यह प्रसाद अर्पित कर भक्त स्वयं भी ग्रहण करें और परिवार तथा जरूरतमंदों में बांटें।

● माँ सिद्धिदात्री का मंत्र

माँ सिद्धिदात्री की कृपा प्राप्त करने के लिए नवमी के दिन उनके विशेष मंत्र का जप करना चाहिए।

मंत्र: "ॐ देवी सिद्धिदात्र्यै नमः"

इसके अलावा भक्त निम्न स्तुति भी कर सकते हैं –
"या देवी सर्वभूतेषु सिद्धिदात्रि रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥"

इस मंत्र का 108 बार जप करने से माँ प्रसन्न होकर भक्त की मनोकामना पूर्ण करती हैं।

● पूजा विधि

• प्रातः स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।

• पूजन स्थल को गंगाजल से शुद्ध करें और माँ सिद्धिदात्री की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें।

• धूप, दीप, फूल, अक्षत, चंदन और प्रसाद अर्पित करें।

• नवग्रह और देवी-देवताओं का आवाहन कर पूजा आरंभ करें।

• माँ का ध्यान करते हुए मंत्रजप और आरती करें।

• अंत में प्रसाद बांटकर दिन को शुभ बनाएं।



नवरात्रि का नवम दिन माँ सिद्धिदात्री की पूजा के लिए सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। वे सिद्धियों और मोक्ष की दात्री देवी हैं। उनकी आराधना से साधक के जीवन से समस्त कष्ट समाप्त हो जाते हैं और वह सफलता, ज्ञान, समृद्धि और अध्यात्मिक उन्नति की ओर अग्रसर होता है। सही विधि से पूजन कर उनके मंत्रों का जप करने पर माँ सिद्धिदात्री अपनी कृपा से भक्त की हर मनोकामना पूर्ण करती हैं।

इस प्रकार, नवमी को माँ सिद्धिदात्री की पूजा कर जीवन में सुख-शांति, उन्नति और मोक्ष की राह प्रशस्त होती है।





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