डोला (पालकी) में माँ दुर्गा के विदा होने से होगा रोग-महामारी, प्राकृतिक आपदा
( Apurba Das )
भारतवर्ष में देवी-देवताओं से जुड़ी परंपराएँ केवल आस्था ही नहीं बल्कि समाज और प्रकृति के गहरे संदेश भी देती हैं। नवरात्रि और दुर्गा पूजा में देवी माँ की प्रतिमा की विदाई के समय जब यह कहा जाता है कि “माँ डोला (पालकी) में विदा हो रही हैं”, तो इसे शुभ की बजाय अशुभ माना जाता है। लोक मान्यताओं और ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जब माँ दुर्गा पालकी में जाती हैं, तो आने वाले समय में समाज और देश पर विपत्ति, रोग और महामारी का साया पड़ सकता है।
नीचे विस्तार से आप जानेंगे कि माँ दुर्गा के डोला (पालकी) में जाने का क्या महत्व है और इसके कौन-कौन से अशुभ संकेत माने जाते हैं—
1. रोग और महामारी का संकेत
माँ दुर्गा जब पालकी में जाती हैं, तो सबसे बड़ा संकेत रोग और महामारी से जुड़ा होता है। लोककथाओं में कहा जाता है कि पालकी चार व्यक्तियों के कंधे पर उठती है, और यह चारों दिशाओं में रोगों के फैलने का प्रतीक है।
• लोगों में बीमारियों का प्रकोप बढ़ सकता है।
• महामारी या संक्रामक रोग फैलने का डर रहता है।
• समाज में स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ गहरी हो सकती हैं।
2. समाज में अशांति और दुख
पालकी को विदाई का साधन माना जाता है, जिसका अर्थ है “भारी बोझ के साथ जाना”। जब माँ इसी माध्यम से जाती हैं, तो लोक परंपरा मानती है कि लोगों के जीवन में दुख और अशांति बढ़ सकती है।
• पारिवारिक झगड़े और कलह बढ़ने का संकेत।
• समाज में अशांति, विवाद और असंतोष फैलना।
• जनता में मानसिक तनाव और बेचैनी का बढ़ना।
3. प्राकृतिक आपदा का संकेत
पालकी धरती से जुड़ी परंपरा है और इसे धरती के बोझ का प्रतीक भी माना जाता है। जब देवी इसी साधन से जाती हैं तो लोक भविष्यवाणियों के अनुसार—
• अकाल, सूखा, बाढ़ या भूकंप जैसी प्राकृतिक आपदाएँ आ सकती हैं।
• कृषि उत्पादन पर बुरा असर पड़ सकता है।
• पशु-पक्षियों में रोग फैलने और प्राकृतिक संतुलन बिगड़ने का खतरा रहता है।
4. आर्थिक कठिनाइयों का संकेत
ज्योतिषीय मान्यता है कि पालकी में प्रस्थान का अर्थ है “भारीपन”। इसका असर आर्थिक क्षेत्र पर भी पड़ता है।
• महँगाई बढ़ने का डर रहता है।
• व्यापार और रोजगार के क्षेत्र में कठिनाइयाँ आती हैं।
• समाज में दरिद्रता और आर्थिक असमानता बढ़ सकती है।
5. जनता में भय और असुरक्षा
माँ जब पालकी में विदा होती हैं तो लोककथाएँ कहती हैं कि यह लोगों के मनोबल की परीक्षा का समय होता है।
• आम जनता में भय और असुरक्षा की भावना बढ़ती है।
• भविष्य को लेकर अनिश्चितता बनी रहती है।
• आत्मबल कमजोर हो सकता है, जिससे लोग मानसिक रूप से विचलित रहने लगते हैं।
6. धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से प्रभाव
धार्मिक मान्यता के अनुसार, माँ दुर्गा का जाना अगले वर्ष तक उनके भक्तों को संबल और आशीर्वाद से वंचित कर देता है। लेकिन जब विदाई डोला में होती है, तो माना जाता है कि—
• धार्मिक आस्थाओं में डगमगाहट आ सकती है।
• भक्ति और श्रद्धा में कमी आ सकती है।
• समाज में परंपराओं और संस्कारों के प्रति लापरवाही बढ़ सकती है।
7. ग्रह-नक्षत्रों का दुष्प्रभाव
ज्योतिष शास्त्र मानता है कि जब पालकी में प्रस्थान होता है, तो ग्रह-नक्षत्रों की स्थिति भी अशुभ संकेत देती है।
• शनि, राहु और केतु का प्रभाव बढ़ जाता है।
• ग्रहों के दुष्प्रभाव से दुर्घटनाएँ, विवाद और असंतुलन आ सकता है।
• लोगों की कुंडली में भी स्वास्थ्य और धन संबंधी समस्याएँ उभर सकती हैं।
◽डोला (पालकी) में विदाई से बचाव और उपाय
यद्यपि लोक परंपरा अशुभ संकेत देती है, लेकिन शास्त्र और आस्था यह भी बताते हैं कि सही उपाय करने से इन कुप्रभावों को कम किया जा सकता है।
• माँ दुर्गा की आरती और हवन – पालकी में विदाई के बाद विशेष हवन और दुर्गा सप्तशती का पाठ करने से नकारात्मक प्रभाव कम होता है।
• दान-पुण्य करना – गरीबों और जरूरतमंदों को भोजन और वस्त्र दान करना शुभ फल देता है।
• नवरात्रि व्रत और साधना – अगली नवरात्रि तक भक्तों को नियमित रूप से दुर्गा स्तुति करनी चाहिए।
• स्वास्थ्य का ध्यान – अशुभ संकेतों में सबसे प्रमुख रोग है, इसलिए लोगों को स्वास्थ्य नियमों और स्वच्छता का पालन करना चाहिए।
डोला (पालकी) में माँ दुर्गा की विदाई प्राचीन परंपरा और ज्योतिषीय दृष्टि से एक गंभीर संकेत मानी जाती है। यह केवल आस्था नहीं बल्कि समाज को सजग करने का संदेश भी है। रोग, महामारी, आर्थिक कठिनाई और प्राकृतिक आपदाओं का भय इस संकेत से जोड़ा जाता है। लेकिन भक्त यदि श्रद्धा, भक्ति और सत्कर्म में जुड़े रहें तो देवी माँ अपने आशीर्वाद से सभी विपत्तियों को दूर कर देती हैं।
इस प्रकार, डोला में विदाई को अशुभ मानते हुए भी हमें इसे चेतावनी समझकर सतर्क, सजग और सकारात्मक आचरण करना चाहिए, ताकि माँ दुर्गा की कृपा से समाज फिर से सुख-शांति और समृद्धि की ओर बढ़ सके।