असम: धुबरी का ‘भूतिया बंगला’
( Apurba Das )
असम के धुबरी ज़िले का एक ऐसा स्थान, जो दशकों से हत्या और भयावह घटनाओं की वजह से ‘भूतिया बंगला’ कहलाता रहा है, जिस जगह पर कभी एक जज ने अपनी ही पत्नी और बेटियों की निर्मम हत्या कर उन्हें बंगले के पीछे दफना दिया था, उसी जगह अत्याधुनिक ज़िला न्यायालय (डिस्ट्रिक्ट कोर्ट) का निर्माण किया गया है।
यह खबर धुबरी के लोगों के बीच चर्चा का विषय बनी हुई थी, क्योंकि जिस जगह को लोग डर और अंधविश्वास की नज़र से देखते थे, वहां अब न्याय का मंदिर खड़ा है।
◽बंगले का इतिहास और उसका रहस्य
धुबरी का यह मशहूर बंगला पहले आर.एस.एन. और आई.जी.एन. शिपिंग कंपनी के अधिकारियों के उपयोग में आता था। बाद में सरकार ने इसे अधिग्रहित कर इसे ज़िला जज का आधिकारिक आवास बना दिया।
लेकिन बंगले की पहचान उस समय बदल गई, जब 1970 के दशक में एक सनसनीखेज़ हत्या कांड सामने आया। फरवरी 1970 में सेवानिवृत्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश उपेन्द्र नाथ राजखोवा ने इसी बंगले में अपनी पत्नी और तीन बेटियों की हत्या कर दी थी। यह घटना पूरे असम ही नहीं बल्कि पूरे देश में सनसनी बन गई थी।
◽हत्या की भयावह रातें
रिपोर्ट के अनुसार, 2 फरवरी 1970 को रिटायरमेंट के बाद राजखोवा अपने परिवार के साथ इसी बंगले में रह रहे थे। 10 फरवरी की रात उन्होंने अपनी पत्नी पुतुली राजखोवा और बड़ी बेटी निर्माली (लिनु राजखोवा) की हत्या कर दी।
इसके बाद 25 फरवरी को उन्होंने अपनी दो छोटी बेटियों – जोनाली (लूना राजखोवा) और रुपाली की भी हत्या कर दी।
हत्या के बाद उन्होंने बंगले के पीछे तीन गहरे गड्ढे खोदे और उनमें लाशों को दबा दिया। इतना ही नहीं, शक न हो इसके लिए उन्होंने गड्ढों पर फूलों के पौधे भी लगा दिए।
◽रिश्तेदारों की शंका और मामला उजागर होना
हत्या के बाद राजखोवा ने बड़ी ही चालाकी से खुद को सामान्य दिखाने की कोशिश की। 15 अप्रैल को वह बस पकड़कर सिलीगुड़ी चले गए और उनके सहयोगी उमेश बैश्य ने भी धुबरी छोड़ दिया।
लेकिन जब पुतुली राजखोवा के भाई – जो कि उस समय एक उच्च पदस्थ पुलिस अधिकारी थे – उस ने परिवार के गायब होने पर गंभीर सवाल उठाए, तब मामला पुलिस तक पहुँचा। धुबरी सदर थाने में शिकायत दर्ज हुई और जांच तेज़ी से शुरू की गई।
◽हत्या का पर्दाफाश
करीब तीन महीने बाद, 24 जून 1970 को जांच अधिकारी डी.एन. कहाली और अन्य वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को एक अहम सुराग मिला। उन्होंने उपेन्द्र नाथ राजखोवा को पश्चिम बंगाल के सिलीगुड़ी के सेवॉय होटल से गिरफ्तार कर लिया।
पूछताछ के दौरान राजखोवा ने हत्या की बात स्वीकार की। उसके बयान के बाद बंगले के पीछे से गड्ढे खोदकर चारों शव बरामद किए गए। यह घटना पूरे राज्य में भय और आक्रोश का कारण बनी। एक पूर्व जिला एवं सत्र न्यायाधीश का इतना क्रूर चेहरा सामने आना सभी को हिला गया।
◽अदालत का फैसला और सज़ा
मामले को उच्च न्यायालय के निर्देश पर विशेष रूप से देखा गया। सेशन कोर्ट ने उपेन्द्र नाथ राजखोवा को अपनी पत्नी और बेटियों की हत्या के अपराध में मृत्युदंड की सज़ा सुनाई।
उनके सहयोगी उमेश बैश्य को हालांकि अदालत ने बरी कर दिया।
14 फरवरी 1974 को राजखोवा को जोरहाट जेल में फांसी पर चढ़ा दिया गया। इसके साथ ही यह भयावह हत्या कांड न्यायिक इतिहास का एक काला अध्याय बन गया।
◽‘भूत बंगला’ की छवि
इस घटना के बाद से धुबरी का यह बंगला ‘भूत बंगला’ के नाम से मशहूर हो गया। स्थानीय लोगों के बीच तरह-तरह दर की
कहानियाँ फैल गईं – कोई कहता कि बंगले से अजीब आवाज़ें आती हैं, कोई दावा करता कि वहां आत्माओं का साया है।
कई दशकों तक यह बंगला वीरान और डरावना स्थान माना गया। यहां से गुजरने वाले लोग भी रात में कदम रखने से हिचकिचाते थे।
◽नया अध्याय – कोर्टहाउस का निर्माण
अब वही जगह, जो वर्षों से बदनाम और रहस्यमयी मानी जाती थी, न्याय का नया प्रतीक बन गया। धुबरी बार एसोसिएशन के सचिव कमल हुसैन अहमद और अध्यक्ष नुरुल इस्लाम चौधरी के अनुसार, यहां छह मंज़िला आधुनिक जिला अदालत का निर्माण हो गया है।
◽लोगों की प्रतिक्रिया
धुबरी के नागरिक इस बदलाव को एक सकारात्मक संकेत मानते हैं। उनका मानना है कि जिस जगह पर कभी परिवार की चीखें और खून बहा था, अब वहां न्याय की गूंज सुनाई दे रही हैं।