दुर्गा पूजा
( Apurba Das )
दुर्गा पूजा भारत की सबसे प्राचीन और व्यापक रूप से मनाई जाने वाली धार्मिक परंपराओं में से एक है। इसका आरंभ वैदिक काल से माना जाता है। मार्कण्डेय पुराण और देवी भागवत पुराण जैसे ग्रंथों में दुर्गा माँ के पूजन का विस्तृत वर्णन मिलता है। ऐतिहासिक रूप से माना जाता है कि दुर्गा पूजा की परंपरा कम से कम 1500 से 2000 वर्ष पुरानी है। किंतु वर्तमान रूप में, विशेषकर बंगाल, असम, ओडिशा और बिहार में जो भव्य दुर्गा पूजा देखी जाती है, उसका आरंभ लगभग 15 वीं से 16 वीं शताब्दी के बीच हुआ।
बंगाल के नवाबों और ज़मींदारों ने इसे सामाजिक उत्सव का रूप दिया। 18वीं शताब्दी में जब ब्रिटिश शासन आया, तब कोलकाता और उसके आस-पास के क्षेत्रों में दुर्गा पूजा एक बड़े सामाजिक और सांस्कृतिक पर्व के रूप में स्थापित हुई। आज यह उत्सव न केवल भारत में, बल्कि पूरी दुनिया में बंगाली समाज , असमिया समास और भारतीय प्रवासी समुदाय द्वारा बड़े उत्साह से मनाया जाता है।
◽दुर्गा पूजा क्यों करते हैं?
दुर्गा पूजा का मुख्य उद्देश्य माँ दुर्गा की आराधना करना और उनसे शक्ति, साहस एवं समृद्धि की कामना करना है। यह पर्व आसुरी शक्तियों पर दैवी शक्तियों की विजय का प्रतीक है। मान्यता है कि माँ दुर्गा संसार की समस्त शक्तियों का केंद्र हैं और वे अपने भक्तों की रक्षा करती हैं।
• असुरों पर विजय का स्मरण – महिषासुर नामक राक्षस ने जब तीनों लोकों पर अधिकार कर लिया था और देवताओं तक को पराजित कर दिया, तब माँ दुर्गा ने प्रकट होकर उसका वध किया। इसलिए दुर्गा पूजा को ‘धर्म की अधर्म पर विजय’ के रूप में भी मनाया जाता है।
• नवरात्रि और शक्ति की उपासना – शारदीय नवरात्र में दुर्गा पूजा का आयोजन किया जाता है। माना जाता है कि इन नौ दिनों तक माँ दुर्गा पृथ्वी पर अपने भक्तों के घर आती हैं और उनके दुःख-दर्द दूर करती हैं।
• सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व – यह पर्व केवल धार्मिक नहीं, बल्कि सामाजिक एकता और सांस्कृतिक आदान-प्रदान का भी प्रतीक है। लोग अपने-अपने भेदभाव भूलकर एकत्र होते हैं और सामूहिक रूप से माँ की आराधना करते हैं।
◽मान्यताएँ और दुर्गा माता की कहानी (महिषासुर वध)
• महिषासुर का जन्म और अहंकार
दुर्गा पूजा की सबसे प्रमुख कथा महिषासुर मर्दिनी की है।
पुराणों के अनुसार, महिषासुर एक असुर था जिसे ब्रह्मा जी ने कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर यह वरदान दिया था कि कोई भी पुरुष उसे नहीं मार सकेगा। इस वरदान से महिषासुर घमंडी हो गया और उसने तीनों लोकों पर आक्रमण करना शुरू कर दिया। देवता, ऋषि-मुनि और मनुष्य सभी उसकी अत्याचारों से पीड़ित होने लगे।
• देवताओं की प्रार्थना और दुर्गा का प्रकट होना
महिषासुर के आतंक से त्रस्त होकर सभी देवता भगवान विष्णु, शिव और ब्रह्मा के पास पहुँचे। तब त्रिमूर्ति और सभी देवताओं ने अपनी-अपनी शक्तियाँ मिलाकर माता पार्वती को दिया। वही शक्ति माँ दुर्गा के रूप में प्रकट हुईं।
• शिव ने उन्हें त्रिशूल दिया।
• विष्णु ने चक्र प्रदान किया।
• इंद्र ने वज्र दिया।
• वरुण ने शंख दिया।
• हिमालय ने सिंह दिया जिस पर बैठकर वे युद्ध के लिए तैयार हुईं।
◽देवी और महिषासुर का युद्ध
माँ दुर्गा ने नौ दिनों तक महिषासुर और उसकी असुर सेना से भीषण युद्ध किया। हर दिन देवी ने असुरों का संहार किया और अंततः दसवें दिन, जिसे विजयादशमी कहा जाता है, माँ ने महिषासुर का वध कर दिया। इस दिन को ‘असत्य पर सत्य की विजय’ के रूप में मनाया जाता है।
◽महत्व
यह कथा दर्शाती है कि जब बुराई अपने चरम पर पहुँचती है, तब शक्ति स्वयं प्रकट होकर धर्म और सत्य की रक्षा करती है। यही कारण है कि दुर्गा पूजा केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं बल्कि जीवन में सत्य, साहस और सद्गुणों के महत्व की शिक्षा भी देती है।
◽दुर्गा पूजा की प्रमुख मान्यताएँ
• माँ दुर्गा घर आती हैं – मान्यता है कि दुर्गा माँ अपने मायके (पृथ्वी) पर नौ दिनों तक रहती हैं और अपने भक्तों का कल्याण करती हैं।
• भक्ति और श्रद्धा से मनोकामना पूरी होती है – भक्त पूरी निष्ठा से उपवास रखते हैं और आराधना करते हैं तो उनकी सभी इच्छाएँ पूरी होती हैं।
• अष्टमी और नवमी का महत्व – इन दिनों में ‘कुमारी पूजन’ और ‘महाप्रसाद’ की परंपरा है, जो देवी की कृपा प्राप्त करने का साधन मानी जाती है।
• विजयादशमी पर प्रतिमा विसर्जन – देवी को विदाई देकर पुनः अगले वर्ष आने का निमंत्रण दिया जाता है। इसे जीवन में परिवर्तन और नये आरंभ का प्रतीक माना जाता है।
दुर्गा पूजा केवल धार्मिक उत्सव नहीं बल्कि संस्कृति, कला, और सामाजिक एकता का पर्व है। महिषासुर वध की कथा हमें यह सिखाती है कि चाहे अधर्म कितना भी शक्तिशाली क्यों न हो, अंततः सत्य और धर्म की विजय निश्चित है। माँ दुर्गा शक्ति, साहस और संरक्षण की देवी हैं। उनके पूजन से जीवन में न केवल भौतिक सुख-समृद्धि प्राप्त होती है, बल्कि आध्यात्मिक उन्नति और मानसिक शक्ति भी मिलती है। यही कारण है कि सदियों से दुर्गा पूजा भारतीय समाज की आत्मा और आस्था का हिस्सा बनी हुई है।